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Munish BhatiaAuthor: munish bhatia
Lyrics and Recitation Munish Bhatia Language: pa Genres: Philosophy, Society & Culture Contact email: Get it Feed URL: Get it iTunes ID: Get it Trailer: |
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मानव जन्म..the human birth
Saturday, 24 May, 2025
वो भोर जब हवाएं कुछ कह रही थींतभी सांसों ने पहली दस्तक दी,नभ ने खोले सम्भावनाओं के द्वार,और एक परिंदानई उड़ानों के सपने लिएइस धरा पर उतरा।हर दिन एक प्रश्न बनकरदहलीज पर बैठा रहाक्या पाया इस जीवन में?क्या रह गया अधूरा सा?कभी चाह में कुछ पाने की,कभी खोने के डर में उलझा रहा मन।इस देह को मिली व्यस्तताझूठ, छल और भ्रमजालों सेअपनों की बेरुखी में भीकुछ अपनापन ढूंढता रहा।मृत्यु को जानकर भीजन्म से जूझता रहा जीवन भरउस अनसुलझे रहस्य के साथ—“क्यूं आया हूं इस धरा पर?”भटकन बनी रही पथ की पहचान,मंजिलें बदलती रहीं चुपचाप,और जीवन कभी रेत सा फिसलता गया,कभी सीप सा कुछ संजोने की चाह में।हर मोड़ पर मंजिलें दूर होती रहीं,राहें अनजानी, और थकान केवल आत्मा को छूती रही।जो पाया, वह कम लगा,जो चाहा, वह अधूरा ही रहा,क्योंकि अंतहीन हैइच्छाओं का समंदर।फिर भी, इस संसार से विदा लेने से पहलेहर कोई कुछ जोड़ना चाहता हैथोड़ी दौलत, थोड़ा नाम,थोड़ी पहचान इस क्षणभंगुर यात्रा में।लेकिन एक दिनहर परिंदा जान ही जाता है—सब कुछ पाने के बाद भीजो अपनों तक लौट न सके,वह सबसे ज्यादा खो बैठा।इसलिए शायदमानव जन्म का सार यही है—कि हम समझ सकेंसच्चा सुख न बाहरी उड़ानों में है,ना अर्जनों की भीड़ में,बल्कि उन रिश्तों में हैजो हमें सचमुचघर लौटने की राह दिखाते हैं।-मुनीष भाटियामोहाली